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कुई छवट्टा मा डॉक्टर बन्न चाहंद, केकु सुपिनु होंदु वो इंजिनियर बणलू। मि बचपण मा बांदर बन्न चाहुंदु छौ।
अरे अरे हैरान नि ह्वा। बाळपन इन्नी होंदु न।
मासूम सी। क्या क्या सुपिना देख्दा छा हम लोग। बड़ा होला त यु करला। बड़ा होला त वु करला। पर अब वेका बारा सोचदा छां त हँसी ए जांदी च। बच्चा मन का सच्चा ता सभी ब्व्ल्दं पर मेरा ख्याळ से बच्चा अकल का कच्चा भी साथ मा जोड़ देन चहेंद।
अब मेरी ही बात ले ल्या। बाळी उम्र मा मेरी जिकुड़ी की एक ही आस छाई बांदर जन्न बनं। वू थे देखिकी लगदु छौ कि बाबा यु होंदी जिन्दगि। वु आज़ाद छाँ कुछ भी करणु कु।
मि स्व्च्दु छौ वु लोग कैकी चुफली खीची कि भगला त वेन ऊंथे पकड़ ही नि पाण । जबि तक वे ते पता लग्लू कि क्या ह्वाई तबै तक त वेना एक डाळ बटी दुसरू डाळ मा फाल मार देण। अर जैकी चुफली खींची वु बस हाथ म्लास्दु रह जालू। यू देखि झिकुड़ि मां कन भली छपचपी प्वाड़दि छे।
लेकिन मेखुणी यु केवल सुपिनु ही छाई। मि दीदीs चुफली खिच्दु छौ त वु मिथे मार मारि कि मेरु ढिनकु (buttocks) लाल कर देंदी छाई। इन्नी कुई हौर शरारत करदू छौ त घोर वाला मेरी पूठी लाल कर देंदा छाई। तब मि युही सोच्दु छौ। अगर होंदु कि बांदर त क्या मजा आंदी। खैर, आधु बांदर त मि बण ही जांदू छौ। कन्न? अरे पिछने बटी।
तबि बांदर बन्ना प्रति मेरु आकर्षण बिझाम देर तक राही। बस मिथे प्रक्रिया नि पता छाई। अगर होंदी त मिन बन्न ही जाण छौ। इन नि च कि मिथे ऊ देखि कि डौर नि लगदी छेए पर मेरी नजर मा वु राजा छाई। जख जाणु कु मन हुआ तखि चल ग्याई, जु खाणु मन ह्वा तै खै ल्या, जन करणू मन ह्वाई वन कर ल्या । एकदम मस्तमौला जनि ज्यूड़ ।
पर फिर यू आकर्षण मेरु एकाएकी ही खत्म ह्वे ग्याई। ह्वाई इन कि जब एकि बार मिन गौं चक्कर लगै त मिन देखि गूणी। अर वु गूणी इन लगनु छौ जन ब्व्लें कुई महात्मा जी बैठ्या होला। कालू गिच्चू और सफेद सफेद दाड़ी। शांत चित्त सी। तपस्या मा लीन। पर बाद मा मि थे पता चलि कि सागर जन दिखण वालू गूणी का शांत व्यवहार मा भी बहुत गैरे च। मिथे केन बताई कि यू अकेला गूणी कई बांदर पर भारी पड़दू। भले ही शांत चुप सी दिख्दु पर जब ये थे गुस्सा आंद त फिर त्राहिमाम त्राहिमाम ही ह्वे जांद।
यु बात जानिकि मेरा भीतर दुई बदलाव ह्वेनी। पहली त मिन बांदर बणनो बिचार त्यागि किलेकि अगर मि बांदर छौ त घौर मा ही गूणियों संख्या बींजा छाई। अर दुसरू यू कि मिन अपण एक भेजी कु नौ भी गूणी भेजी रखी। वु भी गूणी जन एकदम शांत छा पर जब गुस्सा आन्दु छौ त हम छ्व्टा छ्व्टा बांदरों की खैर नि होंदी छे। मि जब एक्लू होंदु छौ त गूणी भेजी का बारा मा सोचिकी खित खित हंसदू छौ । अर घौर वाला परेशान ह्वे जांदा छाई कि कखी ये का ऊपर कुछ ल्ग्यूं त नि च। एक भेदे बात यु च कि गूणी भेजी थे आजतक नि पता चलि कि ऊँ कु नौ गूणी भेजी च। पता चललू त आज भी मेरी पूठी लाल कन्ना मा पिछने नि हटला वु।
पर खैर ये का बाद कई दिनां तक मि बिन सुपिनयू कु रह्यों। फिर मेरी जिन्दगि मा ऐई कॉमिक्स अर तब बटी काफी दिनों तक मि डोगा बननु चाहंदु छौ। अगर आपथे डोगा नि पता त डोगा इन दिख्दु।
डोगा: गूगल बटी साभार |
जि हाँ। बांदरs बाद मि छोणु(कुकुर) बणनु चाहन्दु छौ। पर वेकि कथा के दूसरा दिन लगौलू। सुपिना बहुत छाई पर घौर वालोंन बोल्युं च कि ज्यादा बात लगाण ठीक नि होंद बल।
हाँ, एक बात य छै कि केवल मि ही जनावर नि बण चाहंदु छौ। बल्कि अब त मेरा घौर वाला लोग ही अलग अलग जनावर बणे देंदन मि थे। कबि बव्लदन इन गौर जन किले पड्यू छे। कुछ किले नि कन्नू। कबि ब्व्ल्दन इन सूंगर जन किले च मचई तेरी गंदगि। कबि ब्व्ल्दं कुकड़ा जन किले पक पक ल्ग्यूं छई चुप ह्वेजा। अब तुमि बोला यू भि कुई बात च भला।
हाँ निथेर।
अच्छा अब आप बता क्या आपो भि कुई बचपणो इन अटपटु सुपिनु?
नोट: ये लेखे मन्सा हास्य पैदा कन्न च। गूणी भेजी कु असल नौ पूछि कि लिख्वार ते परेसान नि करयाँ। लिख्वार ते अपणि बोंज(पूठी) से बड़ी माया च। वु वे थे सई-सलामत देख्णु कु इच्छुक च।
© विकास नैनवाल 'अंजान'
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