मंगलवार, 11 अगस्त 2020

अगर जज्बा च त सब कुछ मुमकिन च

हिन्दुस्तान: 9/8/2020
 

व्यक्ति मा अगर कुछ कन्ने चाह च त व कुछ भी कर सकदु। कई बार विपत्ति जब आंद  त अपणा साथ कई मौका भी लेक आंद। बस जरूरत होंद वे मौका थे पैछाणिक वेकु लाभ उठाणेक।

अब मथि दियीं खबर ही देख ल्या। कोरोना काल मा जख लोग बाग़ गिरती अर्थव्यवस्था की चिंता करि करि की अपणु जी सुखाणा छन वखि कई लोग मेहनत करिक एक उदाहरण प्रस्तुत कन्ना छन। रूद्रप्रयागा संदीप राणा भी यूँ व्यक्तियों मा से एक छन जौन अपणि  मेहनतन लोगां समणि एक अच्छु उदाहरण प्रस्तुत कर्यूं च। लॉकडाउन मा घौर एकी बैठणा बजाय ऊन कुछ कन्ने ठानी अर अब व स्वरोजगार करि की अपणी रोजी रोटी चलाणा छन। घौर आण से पैली वु बेंगलुरु मा  नौकरी कन्ना छाई। घौर आणा बाद ऊन सब्जी उत्पादन कन्नौ ज्यू बणाई। शुरुआत मा ऊँथे परेशानी भी ह्वाई किलेक कभी इन काम कर्यूं नि छौ। पर वु बव्ल्दन न: जख चाह वख राह। ये ही तर्ज पर संदीप जी ने यू ट्यूब मा मौजूद विडियो देखिक खेती बाड़ी का विषय मा जानकारी ल्याई अर मेहनत मा जुट गैनि। अब वु मेहनत रंग लाणी च। सभी तरह की सब्जी वु अपणा सारियों मा उगाणा छन। अब तक छ सौ किलो का कारीब टमाटर ऊन बेचियेना।  

संदीप जी जन नजणि कद्गा लोग इन छन जोन य घड़ी मा हाथ पर हाथ धरिs बैठण बजाय कुछ कन्नू अच्छु समझी अर अब अपणी मेहनतो फल पाणा छन। ऊन दिख्यालि कि अगर मन मा चाह च त व्यक्ति कुछ भी कर सकदू। 

 मिन जब य खबर अखबार मा पढ़ी त मन बहुत खुश ह्वे ग्यायी। इन प्रेरक खबर पौढ़ीक मन मा छपछपी लग जांद अर और मेहनत कन्नू हौसला मिल्द। आप क्या सोच्दां ये बारा मा?


© विकास नैनवाल 'अंजान'

6 टिप्‍पणियां:

  1. यह खबर वास्तव में बेहद प्रेरक है। जब सब उदासीनता के दौर से गुज़र रहे हों तब इस तरह के समाचार उम्मीदों को पर लगा देते हैं..

    सुंदर ब्लॉग
    सादर

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  2. हमर घर गाँव मा बहुत लोग नौकरी छोड़िक घर ऐक बंजर पुँगड़ी आबाद कना छन....बहुत अच्छु लगणा सुणीकि कि गाँव फिर से आबाद ह्वे गेन...भगवान सभ्यु ते तन ही सद्बबुद्धि देन और अपण उत्तराखंड भी स्वरोजगार क तरफ बढ।
    बहुत सुन्दर प्रेरक लेख वी भी अपर गढ़वाली मा
    बहुत बहुत बधै भाई!

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    1. जी आभार...गढ़वळि मा कम ब्लॉग छन त मिन सोचि कि एक ब्लॉग अपणी भाषा मा भी होण चैन्द...आपथे अच्छु लगी या सुणिक आनन्द आई...आभार....

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  3. ये भाषा मारवाड़ी से मिलती जुलती है। लेकिन फिर भी पढ़ने में थोड़ी सी अलग ही लगी। बहुत प्रेरणादायक पोस्ट, विकास भाई।

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    1. जी यह मेरी मातृभाषा गढ़वाली है। उत्तराखंड की एक पहाड़ी भाषा। यहाँ गढ़वाली के अतिरिक्त कुमाऊँनी, जौनसारी और नेपाली भी बोली जाती है।

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